याद करता हूँ तुम्हें,
जब भी मन उदास हो।
न होकर भी करीब मेरे,
लगता है मेरे पास हो।
फँस गया था जब मैं,
कठिनाईयों के मझधार में।
घिर चुका था मैं,
निराशा के गहन अंधकार में।
तब कहा था तुमने,
नर हो न निराश हो।"
न होकर भी करीब मेरे,
लगता है मेरे पास हो।
जीवन की असफलताएँ,
मेरा हृदय तोड़तीं थीं।
वो अतीत की परछाईयाँ,
मेरा पीछा नहीं छोड़ती थीं।
दुख की अमावस्या में,
तुम मेरा प्रकाश हो।
न होकर भी करीब मेरे,
लगता है मेरे पास हो।
मुश्किलों में जो साथ दे,
वही तो असली यार है।
निश्छल,निस्वार्थ जो हो,
वही सच्चा प्यार है।
इसीलिए तो आज भी,
मेरे लिए तुम खास हो।
याद करता हूँ तुम्हें,
जब भी मन उदास हो।
न होकर भी करीब मेरे,
लगता है मेरे पास हो।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
E-mail:-kerawahiakn86@gmail. com
Mob.9407914158
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