नीलनयन,मधुर मुस्कान देखकर
सुनकर उसकी पायल।
हो गया था मैं
किसी अजनबी का कायल।
जीतना चाहा था मैंने उसे
पर हुआ मैं उनसे परास्त।
गहन पीड़ा हुई हृदय में
मेरी आशाओं का हुआ सूर्यास्त।
मैंने बनाना चाहा था उसे
अपने भाग्य की रेखा।
पर उस पराजय के बाद
मैंने उसे फिर नहीं देखा।
मैंने पूछा ईश्वर से मुझ संग
आपने ये अन्याय क्यों किया?
वे बोले अशोक जिसमें हित निहित था तेरा
मैंने तुम्हें वही दिया।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें