कोई पूछे गर मुझसे,
तुमने ईश्वर को देखा है?
मैं कहूंगा हाँ।
मैंने ईश्वर को देखा है।
मैंने उन्हें देखा है बच्चों में।
सदैव प्रसन्न,चिंतामुक्त चेहरे।
उनका लड़कर फिर घुल-मिल जाना।
असत्य,हिंसा,झूठ से अनजान।
क्या मान -अपमान।
ये गुण तो केवल ईश्वर में ही
निहित हो सकते हैं।
बच्चे जीवित ईश्वर हैं।
वे बहुत प्यारे हैं।
माँ-बाप के दुलारे हैं।
पल में रूठकर
झट मैं मान जाता।
काश मैं स्वयं को,
बच्चों सा बना पाता।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
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