शुक्रवार, 3 मार्च 2017

।।सूरज को अपनी मुट्ठी में कर लो।।

फिर ना आएगा जो,
उस पल के लिए।
तैयार हो न तुम?
कल के लिए।

कल तुम्हें लड़नी है,
एक बहुत बड़ी लड़ाई।
जिसके लिए की है,
तुमने वर्ष भर पढ़ाई।

माता-पिता, और अपनों की,
है तुम पर आस भरी निगाह।
कि कैसे करोगे तुम,
अपने कर्तव्य का निर्वाह।

पर ये तय कहां है कि,
मिलेगी तुम्हें शत-प्रतिशत सफलता।
परिश्रमी के भी कभी-कभी,
हाथ लगती है असफलता।

निराश न होना तुम,
जीत हो या मिले हार।
दोनों ही परिस्थितियों के लिए,
तुम सदा ही रहना तैयार।

अभी उठो,जागो,
मन में इतना विश्वास भर लो।
कि आसमान के  पार जाकर,
सूरज को अपनी मुट्ठी में कर लो।

रचनाकार:-अशोक"बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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