बुधवार, 29 मार्च 2017

||एक मां की चिट्ठी||

जैसे हर किसी की मां होती है न,मैं भी एक मां हूं.
मेरी बहू विद्युत विभाग में भृत्य के पद पर कार्यरत है.मेरे दो पोते हैं.मेरी बहू बहुत ही शांत,सरल, सुशील,मेहनती और कर्तव्यनिष्ठ है.मुझे कुछ काम करने से पहले ही कह देती है कि मां जी मैं कर लूंगी न.शादी के बाद से लेकर आज तक वह बिल्कुल वैसी की वैसी ही है.अगर नहीं है तो उसकी पहले जैसी वो मुस्कान,उसके गले का वह मंगलसूत्र,उनके हाथों में खनकने वाली वो चूड़ियां और उसके मांग का सिंदूर भी,अब नहीं है.

जानना चाहोगे न कि ऐसा कैसे हो गया?
आओ बताती हूँ.

मेरा बेटा विमल विद्युत विभाग में लाइनमैन था.वह मुझसे बहुत प्यार करता था.मेरे पति तो बहुत पहले ही गुजर चुके थे,इसलिए वही मेरे जीने का एकमात्र सहारा था.ऐसा कोई दिन मुझे याद नहीं जब वह मेरे पैर छुए बगैर अपनी ड्यूटी पर निकला हो.उस दिन भी जब वह ड्यूटी के लिए निकला मैंने उससे कहा-"बेटा आजकल के समाचार पत्रों में दुर्घटनाओं की खबरें पढ़कर मेरा जी घबराता है.तुम एक हैलमेट क्यों नहीं खरीद लेते.कहीं कोई अनहोनी न हो जाए?"
उसने हंस कर कहा-"अरे माँ जिसके सर पर तुम जैसी देवी का हाथ हो,उसके साथ भला कौन सी अनहोनी हो सकती है?पर तुम कहती हो तो आज ड्यूटी से लौटते वक्त एक हैलमेट जरुर खरीद लाऊंगा."

पर उसी दिन ही ड्यूटी जाते वक्त एक व्यस्त चौराहे पर एक चार पहिए के साथ उसके बाइक की टक्कर में उसके सिर पर गहरी चोट आई और वह दुनिया में न रहा.
अगर उसने पहले से ही हैलमेट खरीद कर,हैलमेट लगाया होता तो शायद उसकी जान बच सकती थी.

आज बहू को विमल की जगह पर ही भृत्य के पद पर अनुकंपा नियुक्ति मिली है.

आपकी ज़िंदगी केवल आपकी नहीं है बल्कि उनकी भी है जो आपसे बहुत प्यार करते हैं.

यह चिट्ठी मैं इसी उम्मीद में लिख रही हूं कि शायद किसी एक व्यक्ति को भी इससे कुछ सीख मिल जाए.

                                                 *मैं एक माँ*

✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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