तू पास नहीं,
फिर भी कोई गम नहीं.
तुम्हारी याद साथ है
इतनी खुशी भी मेरे लिए कम नहीं.
सवेरा होने पर तुम भी
वही सूरज देखते हो जो मैं देखता हूं.
तुम भी उसी धरती की गोद में हो
जिस पर मैं अभी बैठा हूं.
ऊपर सिर उठा कर देखने पर
तुम्हें भी मेरी तरह दूर-दूर तक
यही नीला आकाश ही नजर आता होगा.
ये हवा जो मुझ तक आती है,
तुम्हारे गांव के पेड़ों को भी जरूर छूती होगी.
मैं जिसे पीता हूँ उसी जल को
तुम भी पीते हो क्योंकि
उस जल का स्रोत भूमि के नीचे
कहीं ना कहीं तो
एक दूसरे से मिलते ही होंगे.
फिर तुम मुझसे अलग कहां हो.
फर्क बस इतना कि मैं यहां और तुम वहां हो.
रचनाकार अशोक "बस्तरिया"
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