मैं तो हूँ यहाँ।
पर जाने तुम आजकल हो कहाँ।
तुम्हें कहीं ढूँढा नहीं मैंने।
किसी से पूछा भी नहीं।
और पूछूँ भी तो किस हक से।
न कल तुम मेरे थे ना आज हो।
फिर भी न जाने क्यों,
तुम्हारे होने का भाव मेरे भीतर है।
मेरा हृदय कहता है कि
तुम्हारे आँगन में भी खिले होंगे दो फूल।
जिन्हे तैयार कर तुम,
रोज भेजती होगी स्कूल।
तुम भी मेरी तरह
किसी सरकारी पाठशाला में जाती होगी।
नन्हे प्यारे बच्चों को पढ़ाती होगी।
कोमल हाथों से जब तुम,
श्याम पट पर लिखती होगी।
सोचता हूँ कि मैं कि,
अब तुम कैसी दिखती होगी।
अपने घुँघराले केश,
किनारे से हटाती होगी।
नृत्य,गीत,नाटक,
विद्यार्थियों को सिखाती होगी।
तुम भी मनाती होगी अपनी शाला में,
कई जयंतियाँ,पर्व।
संभावनाओं पर बच्चों की,
तुम्हें भी होता होगा मेरी ही तरह गर्व।
तुम्हारे मुख पर होगी अब भी,
वही सादगी,वही मधुर मुस्कान।
जिसके लिए तैयार था मैं,
कभी देने तक को अपनी जान।
आज तुम नहीं हो मेरे पास।
पर सुकून देता है दिल को तुम्हारा अहसास।
इसलिए अब भी मैं तुम्हें याद करता हूँ ।
तुम्हारा मेरा किस्सा अब
हो गया बरसों पुराना।
क्या हाल है तुम्हारा,
कभी मिलो तो मुझे ज़रूर बताना।
रचनाकार अशोक "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail. com
Mob.940714158
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