"यह फटा हुआ,
छोटा सा कंबल संभाल।
और निकल जा अभी,
हमारे घर से तत्काल।"
"बूढी़ आंखें,बूढ़ा शरीर,
तुम्हारी सेवा कौन करे।
अपना कोई काम नहीं क्या?
कि तेरे पीछे हम मरें।"
सुन बहू विमला के मुख से,
ऐसी कर्कश बोली।
देखा मां ने बेटे की ओर,पर मौन था वह,
उसने अपनी आंखें भीगो ली।
दिन ढल गया था
थी रात होने को आई।
कल तक सबकी अपनी थी जो,
क्षण भर में हो गई वह परायी।
दिसंबर का माह था,
चल रही थी शीत लहर।
सब ठुकरा गए उसे,
जी किया कि अब खा ले वह जहर।
तभी अचानक आया,
उस बुढ़िया का पोता।
उसे प्यार था दादी से,
वह लिपटकर रहा रोता।
बोला-"मां आखिर इसने,
किया है कौन सा कसूर।
कि कर रहे हो इनको,
मेरी नजरों से दूर।''
विमला ने अलग किया लाल को,
बोली-"बेटा इसे जाने दे।
बहुत सह लिया,ये बुढ़िया,
अब हमें,चैन से जीने-खाने दे।"
"जीवन इसका है,
वह जो करना है करे।
हमें क्या लेना,
कि वह जिए या मरे।"
सुन मां की बात पुत्र ने,
दादी के हाथ से कंबल ले लिया।
और तुरंत ही उसे,
दो भागों में चीर दिया।
रख एक भाग वह स्वयं,
दूसरा भाग दादी को दिया।
मूढ़ विमला समझ न पाई,
बोली-"बेटा तुमने यह किया।''
बोला बेटा-"मां कभी न कभी तो,
मैं बड़ा हो जाऊंगा।
ब्याह करके घर में,
तुम्हारी बहू लाऊंगा।"
"बूढ़ी हो जाओगी जब तुम,
तब वह घर सम्हालेगी।
उस दिन यही कंबल देकर,
तुम्हें घर से निकालेगी।"
सुनकर पुत्र की ऐसी वाणी,
विमला की बह चली अश्रु धारा।
सोची मैंने यह क्या कर दिया,
उसने स्वयं को धिक्कारा।
वह समझती थी कि वह रहेगी,
सदा युवा,शक्तिशाली,निरोगी।
पर आज पता चला कि,
वह भी एक दिन बूढ़ी होगी।
बोली-"मां मैं कितनी पापिन,
मेरे पास नहीं कुछ भी पुन्य जमा।
पर सब अपराध भूल कर,
कर दीजिए मुझे क्षमा।"
मां तो मां थी उसने,
तुरंत विमला को माफ कर दिया।
और पुत्र,बहू,पोते को,
अपनी बाहों में भर लिया।
धन्य है ऐसी माता,
धन्य है माँ की ममता।
जिसे पास है हर प्रकार के,
दुख सहने की क्षमता ।
रचनाकार:-अशोक"बस्तरिया"
✍Kerawahiakn86@gmail.com
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