शनिवार, 4 मार्च 2017

||सत्य अब भी जीवित है||

पत्नी के प्रसव के चलते आज मैं बहुत व्यस्त रहा.दिन भर की दौड़ में जेब ही ढीला हो गया.
बटुए में कुछ दस-बीस-पचास और एक सौ रुपये का तो एक नोट ही रह गया था .सोचा मोबाईल रिचार्ज करा लूँ.यह सोच कर मैंने जैसे ही जेब से 100 रुपये का एक नोट निकाला मुझे  पहली नजर में ही पता चल गया कि वह नकली है.यह जानकर मुझे बहुत दुख हुआ.मोबाईल दुकान वाले ने भी उस नोट के नकली होने की  पुष्टि कर दी.

मुझे याद आया कि आर.के.पैथॉलाजी लैब में रक्त परीक्षण के दौरान मुझे पाँच सौ के रुपये में से 200 रुपये काटकर 300 रुपये वापस किए गए,यह नोट उसी में से एक था.
मेरा मन किया कि उस नोट के टुकड़े कर फेंक दूँ क्योंकि दूसरों को धोखा देना उचित नहीं.यदि मैं वह
नोट वापस करने जाऊँ तो हो सकता है लैबवाला कह दे कि यह मेरा नहीं है या तुमने इसके बारे में मुझे तुरंत क्यों नहीं बताया और शायद दो चार गालियाँ भी सुना देता.

मैंने विचार किया कि संभव है उसने मुझे वह नोट अन्जाने में दिया हो पर हो सकता है कि उसके पास ऐसे कई नोट हों जिससे मेरी तरह और भी धोखा खा जाएँ.
मैं सीधे लैब पहुँचा और कहा कि भाईसाहब आपके पास से शायद गलती से 100 रुपये का यह नोट मुझे मिल गया था.भले ही आप मुझे बदले में नया नोट न दें किंतु आप अपनी दराज खोलकर सावधानी से देख लें कि उसमें  इसी तरह के और नकली नोट तो नहीं हैं ताकि औरों को परेशानी न हो.

मेरी बात सुनकर उसने वह नोट दिखाने को कहा.उसने मुस्कराते हुए कहा कि शायद धोखे से यह हमारे पास आ गया और धोखे से आपको मिल गया.
यह कहकर उन्होंने वह नोट मुझसे लेकर 100 रुपये का असली नोट दिया.
पर सब ऐसे थोड़े होते हैं.

मुझे मिडिल स्कूल में हजारी प्रसाद द्विवेदी का एक पाठ "क्या निराश हुआ जाय" याद आ गया.
आज जब सब यही कह रहे हैं कि आज बुरे लोगों की कमी नहीं,
मैं भी कैसे मान लूँ कि दुनिया में सच्चे लोग नहीं रहे.
मुझे लगा कि सत्य अब भी जीवित है.

रचनाकार अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail. com
📞940714158

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