ये जंगल में किसने लगाई आग.
कि वनचर रहे हैं भाग.
शशक सर्प पक्षी कीट,भागते मृग सियार.
अश्रु बहाती नि:शब्द,वनदेवी लाचार
.
नित्य गूंजता था जहां विहगों का मधुर कलरव.
आज जल रही वह देवी और पड़ी है बिल्कुल नीरव.
मनुष्य वन से तुमने क्या-क्या नहीं पाया.
फिर भी कृतघ्न तुम कि इसे आग लगाया.
आम तेंदु जामुन जैसे फल.
याद रखना कि खाने को तुझे नहीं मिलेंगे कल.
याद रख तू कुछ भी नहीं है वन के बगैर.
वो माँ है तुम्हारी इसलिए छोड़ दे उनसे बैर.
अन्यथा नहीं है तुम्हारी खैर.
अशोक:-"बस्तरिया"
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