नौ मास मां के उदर में रहकर,
शिशु का जन्म होता है।
परिजन खुश होते हैं,
पर बच्चा रोता है।
अपनों को देखकर वह,
सीखता है मुस्कुराना।
फिर नन्हे पैरों से,
सीखता है वह पग बढ़ाना।
औरों को देखकर,
करता है उनकी नक़ल।
उस समय कहाँ होती है,
अच्छे बुरे की उसे अकल।
किशोरावस्था होता है,
मनुष्य का सबसे अहम पल।
जो निर्धारित करता है शायद,
उसका आने वाला कल।
फिर आती है,
तूफ़ान सी पागल जवानी।
सदुपयोग कर जिसका,
मानव गढ़ता है नई कहानी।
अंत में आती है जरावस्था,
तब लाठी होता है एक मात्र सहारा।
अपने ही उस समय,
हम से कर लेते हैं किनारा।
फिर एक दिन,
चुपचाप मृत्यु आती है।
जो जीवात्मा को,
एक नए सफ़र पर ले जाती है।
"अशोक"इस शाश्वत सत्य को,
सदा ही रखना याद।
कर्म करता चल,
ये बहुमूल्य समय न कर बरबाद।
रचनाकार:-अशोक"बस्तरिया"
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