मर कर भी तुम ने,
बढ़ाया है मातृभूमि का मान.
वीरों व्यर्थ नहीं जाएगा,
तुम्हारा बलिदान.
दूर करने को,
औरों के जीवन का अंधकार.
तुम छोड़ आए,
अपना हंसता-खेलता परिवार.
तुमको तुम्हारे कर्मों को,
हमारा सादर नमन.
प्राण उत्सर्ग कर दिया तुमने,
ताकि हरा-भरा रहे हमारा चमन.
आज हम सबको तुम पर,
है बड़ा ही अभिमान.
वीरों व्यर्थ नहीं जाएगा,
तुम्हारा बलिदान.
परास्त होंगे एक दिन,
वो बंदूक और हिंसा के भक्त.
जो बहाते हैं अकारण ही,
अपनों का रक्त.
कभी तो स्वतंत्रता का,
सूर्य होगा उदित.
ये हिंसा कभी तो,
होगी पराजित.
उन मुरझाये चेहरों पर,
कभी तो खिलेगी मुस्कान.
वीरों व्यर्थ नहीं जाएगा,
तुम्हारा बलिदान.
पर हितार्थ जो,
कठिनाइयों के घूँट पीता है.
धन्य वह,
जो औरों के लिए जीता है.
न जीत कर भी,
जीत गए तुम सत्य का समर.
मरकर भी तुम,
सदा के लिए हो गये अमर.
यह संसार करेगा,
तुम्हारा सदैव गुणगान.
वीरों व्यर्थ नहीं जाएगा,
तुम्हारा बलिदान.
मर कर भी तुम ने,
बढ़ाया है मातृभूमि का मान.
वीरों व्यर्थ नहीं जाएगा,
तुम्हारा बलिदान.
✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
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