जाने कितने दिन,
गए हैं बीत।
पर याद आता है,
मुझे मेरा अतीत।
कालेज में मेरे मुझे,
भा गया था एक हसीन चेहरा।
उनकी गहरी आँखों में जैसे,
था रहस्य छुपा कोई गहरा।
उनका आकर्षण मन में,
धीरे-धीरे बढ़ने लगा।
मेरा एकतरफा प्रेम,
अब परवान चढ़ने लगा।
सोते-जागते,
दिन-रात,आठों पहर,
मुझे आती थी,
बस एक वही नज़र।
एक दिन कहा मैंने उससे,
मेरा प्रेम करो अंगीकार।
पर उसने प्रस्ताव मेरा,
कर दिया अस्वीकार।
दुख हुआ बहुत किंतु,
मैंने स्वयं को संभाल लिया।
उस को मैंने अपने,
हृदय से निकाल दिया।
पर उस दिन भीतर मेरे,
हुए कई अद्भुत परिवर्तन।
आया समझ कि,
सुख-दुख का खेल है जीवन।
पर भूलकर भी उसे,
मैं नहीं भुला पाया।
इसलिए आज फिर,
वो मुझे याद आया।
रचनाकार:-अशोक"बस्तरिया"
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