बंद कर दें उसे,
यदि कहीं पर खुला हो कोई नल.
आओ हम बचाएँ जल.
जल का महत्व न समझा हमने,
जाने किस दुनिया में रहते थे.
पानी की तरह पैसा बहा रहा यह,
कल तक हम ये कहते थे.
न समझा यदि हमने इसकी महत्ता.
नहीं रहेगा अपना कल.
आओ हम बचाएँ जल.
क्या हरे-भरे भुट्टों के खेत,
तुम्हारे मन को नहीं लुभाते?
क्या इस मिट्टी की उपज,
तुम नहीं खाते?
गर मिला न पानी तो कैसे,
तैयार होगी तुम्हारी फसल?
आओ हम बचाएँ जल.
है विवर्ण किस तरह,
देखो ये शुष्क धरती.
अपने ही पुत्रों के कृत्यों पर,
शायद यह रुदन करती.
कल पैदा न हो जाए कोई कठिन समस्या,
कि जिसका न हो कोई हल.
आओ हम बचाएँ जल.
प्यासे सब जीव-जंतु भी वन के,
निकल पड़ते हैं करने जल की तलाश.
पर कई मर जाते हैं,
इससे पहले कि पूरी हो उनकी आस.
करनी हमारी ये सब और,
क्यों कोई दूसरा पाए इसका फल.
आओ हम बचाएँ जल.
वन,जमीन और नदियाँ भी,
अब हिस्सों में बँट रहे हैं.
जिन वृक्षों की होती थी कभी पूजा,
वे धीरे-धीरे अब कट रहे हैं.
कल का संस्कारी मानव.
आज किस राह पर गया निकल.
आओ हम बचाएँ जल.
पानी की किल्लत में,
जाने वे किस तरह जीते हैं.
इसका महत्व पूछो उनसे,
जो पोखर का दूषित पानी पीते हैं.
ऐसे लोगों के साथ तो,जल व्यर्थ बहा.
न करें हम कोई छल.
आओ हम बचाएँ जल.
बंद कर दें उसे,
यदि कहीं पर खुला हो कोई नल.
आओ हम बचाएँ जल.
✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158
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