शनिवार, 4 मार्च 2017

||मेरे अपने||

ये बेजान काले पत्थर.
मूक होकर भी
धैर्यवान और अडिग रहना सिखाते हैं.

अपने पत्तों की सरसराहट से
आनंदित करते वृक्ष
मुझे झुकना सिखाते हैैं.

खेतों में हल खींचते चौपाये
किसानों के देवता,
जिनसे मैंने मेहनत करना सीखा.

दूर कहीं से लहराती आती बावरी पवन,
मुझे चंचलता सिखाती है.

हवा के संग झूमती
सुनहरी धान की बालियां.
मुझे खुश रहना सिखाती हैं.

हम सबकी प्यारी धरती माता,
सब कुछ सहना सिखाती है.

उपर स्थित नीलवर्णी विशाल व्योमछत्र,
मुझे समता का पाठ पढ़ाती है.

उछलती-कूदती कल-कल करती नदियाँ,
मुझे गतिशील रहना सिखाती हैं.

नभ में विचरते हँसते गाते पक्षी सुंदर,
मुझे मस्त रहना सिखाते हैं.

टेसू,महुआ,अमलतास के पुष्प
जिनसे मैंने हंसना सीखा.

सर्वशक्तिमान ईश्वर,मेरे माता पिता,
मेरे प्रेरणा स्रोत गुरूजन, मेरे आत्मीय सखाजन!
ये सभी मेरे अपने हैं.

कोई भी मुझे पराया.
अब तक नजर नहीं आया
सच....!

रचनाकार अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail. com
📞940714158

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...