शनिवार, 4 मार्च 2017

|| मन शिवमय हो जाए||

समस्त संसार
तुम्हें मानता है.
पर बिरला ही
कोई तुम्हें जानता है.

समय तुम्हारा दास
अजर अमर अविनाशी तुम.
नीलकंठ महादेव शंकर
कैलाश निवासी तुम.

संपूर्ण ब्रह्मांड के संचालक
तुम सर्वशक्तिमान परमात्मा.
जीव भले हों भिन्न किंतु
है सबमें एक समान आत्मा.

हो त्रिलोकपति तुम
पर जीवन तुम्हारा कितना सरल.
अन्यथा है कौन जग में
जो परहित पिए गरल?

सारे सुखों के दाता हो
परंतु हो नहीं तुम भोगी.
देह पर अपने भभूत लगाए
बने बैठे हो जोगी.

शत्रु तक के लिए जिसने
अपना भण्डार खोला.
क्षण भर में प्रसन्न हो जाता
मेरा शिव बड़ा ही भोला.

विषधरों के मध्य रहकर भी
रहते वो सदा विषहीन.
कहते ज्यों कि रहो भले पापियों के संग
पर रहो सदा पापहीन.

सच्चा मानव वही
जो शिवत्व को धारण करे.
निजता को त्यागकर
सर्वहित का वरण करे.

न हो जिसे तनिक भी
अपने धन-शक्ति पर अभिमान.
ऐसे व्यक्ति से सदा
प्रसन्न रहते भगवान.

अशोक बन,न कर शोक,
और क्या पाने की है तुमको अभिलाषा.
न दौड़ सुख के पीछे श्वान सा
कभी पूर्ण नहीं होगी तुम्हारी आशा.

कर परमार्थ के कार्य
कि स्व तुम्हारा खो जाए.
ये तन शव होने के पूर्व
मन शिवमय हो जाए.

रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail. com
📞940714158

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