आदमी को उसकी मंजिल तक पहुँचाती हूँ.
हर राहगीर का मैं सच्चा साथी हूँ.
मैं सड़क हूँ.
मैं सुन्दर तो नहीं पर एक पथिक,
जब अपने गंतव्य तक पहुँच जाता है.
मैं कह नहीं सकती कि
मुझे कितना आनन्द आता है.
कभी बच्चे हँसते-गाते-मुस्कराते,
बस्ते पीठ पर लटकाए पाठशाला जाते.
कभी एंबुलेन्स मौत से जूझते बीमार को ले जाती.
कभी दुल्हा-दुल्हन,बैंड बाजा और बाराती.
कभी श्रृंगार कर कोई बहन,
जाती अपने भाई को राखी बाँधने.
और कभी एक जवान कई दिनों बाद
आता अपनी माँ से मिलने.
सनवारिन भी मंगलवार के दिन
अपनी सब्जी की डाली भरती है.
और बाजार जाती हुई वह
मेरे ऊपर से ही गुजरती है.
ये सब देखते हुए मुझे,
कई अरसा गुजरा.
ऐसा कौन है जो,
मुझसे होकर न गुजरा.
भले ही देखा नहीं
किसी ने भी मेरा रोना.
पर मुझे भी पड़ता है
कभी-कभी अपनों को खोना.
क्योंकि मुझसे गुजरता हुआ कोई
हर एक घंटे में दुर्घटना का शिकार होता है.
अत्यंत गंभीर कोई
हर दिन ही मृत्यु की नींद सोता है.
और इस तरह रोज ही
कभी किसी विद्यार्थी की,
किसी दूल्हा या दुल्हन की,
किसी बहन की,
किसी माँ की या
किसी सनवारिन की आस अधूरी रह जाती है.
अच्छा लगे कि बुरा ये जानो तुम.
मैं सड़क,एक बात कहूँ गर मानो तुम.
पीकर शराब और तेज गति से
न चलाना मेरे भाई वाहन.
और करना सदा ही,
यातायात के नियमों का पालन.
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail. com
📞940714158
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें