शनिवार, 18 मार्च 2017

||आपन बाई ल गारी झन देहु न||

काली कोंडागाँव के कवि सम्मेलन म बहुत रात होगे जी.घर अमरत-अमरत 11 बज गे. हमर घर के खपाट खुल्ला रहे रहय. में समझ गेंव कि बेटा आज तोर तेल निकलने वाला हे.

भीतरी जाके देखथँव कि मोर बाई (जेखर नाव आय लछमी बाई) ओ ह अपन थोथना ल मिरचा जइसे लाल बना के बइठे हे.
ओ ह मोला देखते साट मोर उपर चिल्लइस.

खड़ेक्खड़े मोर पूछताछ सुरु होगे.

"कहाँ जा रेहे"

"कोंडागाँव के राजाराम भइया घर कवि सम्मेलन म जा रेहेंव वो."

"राम घर जा,कि लछमन घर जा.
बता के नी जा सकस का?"

"का करतेंव वो.तें ह बड़े बिहनिया ले उठके मउहा बीने ल चल दे,ताहन में तोला नी बता पाएँव."

"अच्छा बता तो कवि सम्मेलन म का-का होइस?"

"तें ह उहाँ के मजा ल का जानबे वोे. उहाँ कतकौन कवि मन रहँय, ऊँखर मन ले रंग-रंग के कविता,गाना सुने ल मिलिस."

"कमई-धमई बाल बच्चा के सुरता नई हे,
अऊ घूमत रहिथस लकर-लकर.
अऊ आधा रात के आके घर म,
तैं करत हस बकर-बकर.
तें ह का कविता पढ़े होबे?"

"में ह न,गाना गाएँव."

"का वाला गाना?"

"काने मा बाली अऊ गोरा गोरा गाल येल्ले."

"रोगहा.जा अऊ चूल्लू भर पानी म डूब के मर.
सियान होवत हस,थोरकिन तो उम्मर के लिहाज कर."

तोर देंह आगी म जरय.
अऊ तोर मुँह म कीरा परय.
डोकरा होत हस अउ तोर नियत खराब होवत हे.
कहीं मोर सउत-वउत लाने न,त देख लेबे.
में तोर अइसी की तइसी करहूँ."

में भड़क गेंव.केहेंव-"तें मोर का अइसी की तैसी करबे ,मोर डैकी होके मुही ल गारी देत हस.दू-चार रुपया कमा के कइसेे घर चलात हँव मही जानथँव.मोर ऊपर तें सक करथस.में एक कनि बड़े साहब बने रतेंव न तोर जइसन बिलई थोथना वाली ल पूछतेंव घलो नहीं.समझे."

ओहो मोर मुहु ले गलती से "बिलई थोथना" सब्द निकल गे जी.

ओखर बाद

खपाट ल बंद कर दिस मोर बाई.
अऊ भीतरी म मोर दे धुनई,दे धुनई.

में अभी कोंडागाँव  RNT हास्पिटल म भर्ती हावँव अऊ ए कहनी ल में डेरी हाथ ले लिखत हँव काबर कि मोर जेवनी हाथ अऊ दुन्नो गोड़ टूट गे हे.मोर बाई घलो तीर म बइठे हे.अपन मुहु ल अँचरा में लुकाय हे.
पता नी चलत हे हाँसत हे कि रोवत हे.

फिलहाल तो मोर इस्थिति नाजुक बने हवय.दुआ करव कि में बाँच जाँव.
फेर अपन बाई ल कभ्भु गारी झन देहु न.

✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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