बुधवार, 8 मार्च 2017

||मेरी छोटी सी दुनिया||

आज पढ़िए

||मेरी छोटी सी दुनिया||

मैं अशोक कुमार नेताम.
मेरा गाँव केरावाही.
तहसील-माकड़ी
जिला कोंडागाँव(छत्तीसगढ़)

बचपन में मैंने अपने पिता जी से बहुत सारी कहानियाँ सुनीं थीं.जो मुझे हमेशा प्रेरित करती थीं.
1991 में कांकेर जिले(उस समय बस्तर )में पुरी गाँव में मेरे पिताजी एक हाई स्कूल में भृत्य पद पर नियुक्त हुए.
वहीं पर ही 90 के दशक के पूर्वार्ध में बचपन में मैंने एक पत्रिका पढ़ी थी "समझ झरोखा".
और मैं आज भी दावे के साथ कह सकता हूँ कि उसके जैसी शायद ही कोई बाल पत्रिका अभी छपती हो.
उसमें से कुछ नाम मुझे स्मरण है लक्ष्मीनारायण पयोधि,लाला जगदलपुरी व खैम वैष्णव जी का.
मुझे लगता है कि मेरे भीतर रचनात्मकता के बीज उसी पत्रिका ने बोए थे.छपती तो वह भोपाल से थी पर उस पत्रिका से मुझे जाने क्यों बस्तर की मिट्टी के सुगंध का अनुभव होता था.

अपने गाँव से पुरी आजे जाते कांकेर के पुराने बस स्टैंड पर हम जय हिंद होटल में नाश्ता करते व निकट के ही बुक स्टाल से मेरे पिताजी हमारे लिए चंपक,बालहंस,नन्हे सम्राट,चंदा मामा आदि खरीद लेते थे.ये बाल पत्रिकाएँ मैंने खूब पढ़ीं.
मुझे पढ़ने की इतनी जल्दी होती थी कि मैं कोई भी पत्रिका एक-दो घंटे में ही पढ़ लेता था.
पुरी में आकाशवाणी रायपुर से मेरा लगाव रहा.

वहाँ दसवीं तक की पढ़ाई कर मैं शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय लंजोड़ा में ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई जीव विज्ञान विषय से की.यहीं मैंने आकाशवाणी जगदलपुर को सुना व पत्र व्यवहार भी किया.पर मैं हमेशा अव्यक्त  ही रहा.

रसायन विषय शुरु से ही मेरे लिए टेढ़ी खीर  थी.
इसलिए कोंडागाँव महाविद्यालय में bsc की परीक्षा में लगातार दो वर्ष असफल हुआ.मैं बहुत निराश था.एक दिन गीतांजलि बुक डिपो कोंडागाँव में दो पुस्तकें मेरे हाथ लगीं.एक थी "सकारात्मक सोच की शक्ति"(मूल लेखक-नार्मन विन्सेन्ट पील/अनुवादक:-डॉ.सुधीर दीक्षित) और दूसरी थी "बस्तर की एक झलक"(लेखक:-नितिन पोटाई जी).
इन्हें पढ़कर  मैं अपने नकारात्मक विचारों पर काबू पा सका और बस्तर को थोड़ा बेहतर जान सका.

वहाँ लाला जगदलपुरी
जी,कोंडागाँव के लोकचित्रकार खैम वैष्णव जी और "समझ झरोखा" के संपादक लक्ष्मीनारायण पयोधि जी के नामों की भी चर्चा थी.
उस दिन मैंने जाना कि आखिर क्यों भोपाल से छपने वाली उस पत्रिका से बस्तर की खुश्बू आती थी.

वहीं एक और नाम था वासुदेव साहसी जी का(कांकेर व बस्तर का इतिहास लिखने के संदर्भ में).
दिमाग पर जोर देने पर याद आया कि यह नाम तो मैंने कालेज में राष्ट्रीय सेवा योजना कक्ष के बाहर देखी है.
मैंने सोचा कि साहसी सर जैसे बुक राइटर का सान्निध्य मेरे जीवन को एक नई दिशा दे सकती है.

मैंने तय कर लिया कि मैं अब विषय बदलकर पढ़ूंगा.
हिंदी मेरा शौक रहा था,साहसी सर का सान्निध्य पाने के लिए मैंने इतिहास विषय चुना और तीसरे विषय के रूप में मैंने राजनीति शास्त्र का चयन किया.
मैंने राष्ट्रीय सेवा योजना भी ज्वाइन की.

पहले वर्ष की प्राइवेट से करके मैंने कोंडागाँव कालेज से दो वर्ष की नियमित पढ़ाई की.
वैसे यहाँ अध्ययन कराने वाले हर प्राध्यापकों की वाक् कौशल व सरलता से मैं हमेशा प्रभावित रहा.
पर सर्वाधिक निकटता(शायद)मुझ पर साहसी जी का और हिन्दी साहित्य पढ़ाने वाली मंजू बेरा दीदी का रहा.
सन् 2007-08 मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा.मेरे साथ कई घटनाएँ हुईं. कुछ मिट रहा था,कुछ बन रहा था.मैं स्वयं के भीतर कोई बहुत बड़े परिवर्तन का अनुभव कर रहा था.कालेज के दो साल की पढ़ाई को मैं अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मानता हूँ.

मेरा स्वप्न रहा था कि मैं बेरा मैडम की छाया में रहकर हिन्दी साहित्य में नियमित विद्यार्थी के रूप में एम.ए. करूँ,जो कि 2008 में मेरे वर्ग 3 के शिक्षाकर्मी बनने के बाद पूर्ण न हो सका.

बाद में कोंडागाँव कालेज से ही मैंने अमहाविद्यालयीन छात्र के रूप में हिंदी में एम.ए.(2010में) किया.

अभी 2016 के नवंबर महीने में ही मैंने फेसबुक पर अपनी पहली कविता पोस्ट की.लोगों की अच्छी प्रतिक्रियाएँ और प्रेरणाएँ मिली.ऐसे लोगों से संपर्क हुआ जिनके नाम मैं केवल अखबारों में ही देखता पढ़ता था.
मैं लिखता गया और लिखता गया.

और इस तरह मेरी ये *छोटी सी दुनिया* बन गई.
आप ने मुझे पढ़ा आपका धन्यवाद आपके भीतर विराजमान परमात्मा को मेरा नमन.

     आपका
अशोक कुमार नेताम

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