शत्रुता थी कभी किसी से,
तो कोई बात नहीं.
होती सुबह है कभी तो,
रहती सदा रात नहीं.
निकाल दे मन से,
बैर का वह पुराना शूल.
बीती बातों को,
सदा के लिए जा तू भूल.
कह दे आज प्यार की दो-चार बोली.
कि आज है होली.
हाथों में लेकर गुलाल,
और संग मिलकर सारे मीत.
मचाओ धमाल-मस्ती,
नाचो,गाओ फागुन के गीत.
पिचकारी ही तो है,
कोई मार तो नहीं रहा तुम्हें छुरा.
इसलिए न मानना आज,
तुम किसी भी बात का बुरा.
लगाओ सबको रंग,अबीर,रोली.
कि आज है होली.
इन रंगों की भांति ही,
जीवन में भी कई रंग हैं.
रंग भिन्न भले हो पर,
इंद्रधनुष में तो एक संग है.
अलग लिंग,जाति,धर्म,
वेशभूषा और परिधान.
पर याद रहे कि सबसे पहले
हम हैं एक इंसान.
भेद भाव न रखो करो सबसे हंसी ठिठोली.
कि आज है होली.
✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें