शुक्रवार, 3 मार्च 2017

।।में धन्य होगेंव जी पा के छत्तीसगढ़ दाई के कोरा।।

छ्त्तीसगढ़ के माटी भइय्या,
आय धान के कटोरा।
में तो धन्य होगेंव जी,
पा के अइसन महतारी के कोरा।

जात-धरम के भेद नइ हे,
सब झन मिलके रहिथें।
एक दूसर के दुख ल,
मिलके जम्मो सहिथें।
रहन-सहन इहाँ के सुघ्घर,
गुरतुर भाखा बोली।
देवर-भउजी,सारी-भाँटो के,
मन भावय हँसी ठिठोली।
पथरा-पथरा देंवता बिराजय,
तिहार जिहाँ के हरेली,तीजा,पोरा।
में तो धन्य होगेंव जी
पा के अइसन महतारी के कोरा।

हाँस के बना लेथँय इहाँ,
हर कोई ल आपन मीत।
गूँजय जिहाँ चारों कोती,
करमा,ददरिया,सुवा के गीत।
बरा,सोंहारी,ठेठरी,खुरमी,
अउ चाँउर के चिला।
मुँह म पानी आ जाय,
खाय बर तरसँय जम्मो माइ-पिला।
जिहाँ खाये के पहिली दाई,
करय आपन बेटा के अगोरा।
में तो धन्य होगेंव जी,
पा के अइसन महतारी के कोरा।

छत्तीसगढ़ के माटी भइय्या,
आय धान के कटोरा।
में तो धन्य होगेंव जी
पा के अइसन महतारी के कोरा।

रचनाकार:-अशोक"बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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