मैं कोण्डागाँव जिले का वासी हूँ।हल्बी मेरी मातृभाषा है।
इसलिए मेरी यह कविता हल्बी में.....
जो न समझ पाएँ उनके लिए कविता का हिन्दी अनुवाद भी किया गया है।
।।जे करतो आय एबेय कर।।
ए बाट रेंगय्या तुय,
बाट दखसिस काचो।
एकलोय इलिस एथा बाबू,
कोनी निहात तुचो।
पैसा-कवड़ी,जमीन-बाड़ी,
भाई-बहिन,बूबा-आया।
छांडून जासे एक दिन,
ये सब आत जग चो माया।
धन रहो भले,
लाख,करोड़,अरब।
मांतर नी कर तूय,
खिंडिक बले गरब।
सुरती,बीड़ी,गुटखा चिलम,
अउर सल्फी,मंद।
जीव धरा आत ए मन,
एके करा बंद।
मनुक जीव पावलिस,
कर तूय सत करम।
सब मेटुन जायदे मांतर,
जीवत रहेदे धरम।
जे करतो आय एबय कर,
नाहले गागसे पासे।
डोकरा होलो बेरा,
मूंड के धरून पसतासे।
कविता का हिन्दी अनुवाद
*।।जो करना है अभी कर।।*
राहगीर तुम आखिर,
किस की प्रतीक्षा कर रहे हो।
यहां तुम्हारा कोई नहीं है,
तुम यहां अकेले आए हो।
जमीन जायदाद,रूपये पैसे,
भाई बहन माँ बाप।
छोड़ जाओगे एक दिन,
ये सब हैं एक माया।
धन रहे पास भले,
लाख करोड़ अरब।
फिर भी ना करना,
तनिक भी तुम गरब।
तम्बाकू,बीडी,गुटखा चिलम,
और सल्फी शराब।
जानलेवा हैं ये सब,
इसे करो बंद।
मानव जीवन मिला तुझे,
कर तू सत्कर्म।
सब मिट जाएगा,
लेकिन रहेगा सदा धर्म।
जो करना है अभी कर ले,
नहीं तो पीछे रोएगा।
बूढ़े हो जाने पर,
शीश पकड़ पछतायेगा।
रचनाकार:-अशोक"बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
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