सोमवार, 27 मार्च 2017

||जीवन का वास्तविक ज्ञान||

एक मासूम बच्चा.
था उम्र का कच्चा.
लेकर मन में,उत्तर की आस.
गया प्रश्न लेकर वह,अपनी मां के पास.
पूछा मां से,मैं कौन हूं?
मां बोली अरे नहीं पता तुझे,कमाल है.
मेरी आंखों का तारा,तू मेरा लाल है.
पर माँ ने उसे जो बताया.
वह उत्तर,बच्चे को नहीं भाया.

फिर कभी आया रक्षाबंधन का त्यौहार.
राखी बांध,बहन ने लुटाया भाई पर प्यार.
फिर बोला भाई कि
पूछता हूँ तुमसे कुछ मैं,
जरा सच-सच कहना.
आखिर मैं कौन हूं बहना?
बोली बहन,बात अब तक तुम्हें समझ न आई.
कि तुम तो हो मेरे प्यारे भाई.
पर बहन की बात भी,
प्रतीत हुई उसे अपुष्ट.
उसके उत्तर से भी वह,
बिल्कुल नहीं हुआ संतुष्ट.

कामयाबियों की,
नई सीढ़ियां चढ़ने.
बड़ा होकर वह गया,
किसी पाठशाला में पढ़ने.
यहां पर भी वह,
स्वयं से ही जूझता रहा.
मन की पहेली को वह,
खुद ही बूझता रहा.
फिर एक दिन अवसर पाकर उसने,
शिक्षक से पूछा मैं कौन हूं?
बोला शिक्षक अरे तुझे नहीं है खबर?
कि तुम्हारा नाम तो है अमर.
जवाब पाकर भी शिक्षक से,
वह रहा व्यथित.
अब भी था वह,
एक संतोषजनक उत्तर से वंचित.

एक दिन वह गया निकट के एक मंदिर में.
थी विशाल देव प्रतिमा,देवालय के अंदर में.
था खड़ा पीत वस्त्र पहने पुजारी,
माथे पर था लाल टीका.
सोचा,क्यों न इसी  से पूछूँ?इसने  तो जीवन में,
है बहुत कुछ सीखा.
पूछा उसने कि बताइए महाशय.
कौन हूं मैं और क्या है मेरा परिचय?
बोला पुजारी तुम्हें ज्ञात नहीं है बंधु.
कि तुम तो हो एक हिंदू.
अपनी समस्या का समाधान न पा सका.
पुजारी से भी वह सच्चा ज्ञान न पा सका.

जवान हो गया वह और,
एक दिन हो गया उसका विवाह.
पर न हो सकी पूरी उसकी,
अंतर्मन के प्रश्नोत्तर पाने की चाह.
एक दिन बोला वह अपनी सहचरी से,
तनिक मेरे निकट आओ.
मैं हूं कौन?
मुझे,जरा ये बताओ.
बोली पत्नी मुझे है आपसे असीम रति.
आप तो हैं मेरे स्वामी,मेरे पति.
पत्नी के उत्तर से भी,
वह हुआ निराश.
न बुझी उसकी,
स्वयं को जानने की प्यास.

पुत्र से पिता बना,
पिता से वह बना दादा.
और एक दिन मर गया वह,साथ ही,
मर गया,उसके सत्य जानने इरादा.
शरीर त्याग कर उड़ चली,
आकाश मार्ग से उसकी आत्मा.
पहुंची परलोक में,
पूछा फिर उससे परमात्मा.

कि बताओ तुम कौन हो?

आत्मा बोली मेरा नाम तो अमर है.
यह सुनकर हँसा परमात्मा बोला,
ये मात्र तुम्हारा भ्रम है.

मन को एकाग्र करो,
और तनिक तुम रहो मौन.
ये कुछ दृश्य देखो फिर,
जान जाओगे,
कि आखिर तुम हो कौन.

प्रथम दृश्य विशाल शिवालय,
जहाँ गूँज रहे हैं भोले बाबा के जयकारे.
है भक्तों की है अपार भीड़.
उनमें से एक वह भी है.
मुख से जपता हुआ निरंतर,
ओम नम: शिवाय.
पीले वस्त्र,माथे पर तिलक,
गले में तुलसी की माला और,
हाथ में कमंडल लेकर,
शिवलिंग पर जल चढ़ाता हुए.

दूसरा नजारा यह शायद कोई मस्जिद है.
जहां वह अदा कर रहा है,
दोनों घुटनों को मोड़े हुए नमाज.
सिर ऊपर उठा हुआ है.
आँखें ऊपर देख रही हैं
और खुदा की बंदगी में,
दोनों हाथ भी ऊपर उठे हुए हैं.
और वह कुछ मांग रहा है.
शायद अल्लाह ताला से,
दुनिया में अमन-चैन,
और लोगों की सलामती की दुआ.

तीसरा दृश्य वह है,
एक बड़े गुरुद्वारे में.
उसकी बड़ी-लंबी दाढ़ी,
वह सिर पर पगड़ी पहने.
पालथी मारकर बैठा हुआ.
दोनों हाथ जोड़कर और
मूँदकर अपने दोनों नेत्र,
गा रहा है वह अपने गुरु के शब्द-कीर्तन.
और उच्चारण कर रहा है मंत्र.
एक ओंकार सतनाम कर्ता पुरख.

चौथा दृश्य,यह है एक विशाल गिरिजाघर.
जिसके भीतर एक बड़ा घंटा,
सामने खड़ी एक बड़ी सी आदमकद,
क्राइस्ट की सफेद मूर्ति भी.
क्राइस्ट के सिर पर कांटों का ताज,
और हाथ-पैरों में ठोंके गए,
रक्तरंजित कील भी.
उसके सामने ही खड़ा होकर *वह*,
इस गिरिजाघर में वह पढ़ रहा है,
अपने प्यारे परमेश्वर के,
पवित्र वचनों का संग्रह,बाइबिल.
कर रहा है वह प्रेयर,
ताकि दुनिया में शांति का हो साम्राज्य.

और बहुत कुछ देखा उसने,
देखा कि कभी वह नर है,
तो कभी है, वह नारी के वेश में.
कभी वह भारत की भूमि में है,
तो वह,कभी है किसी और देश में.

न हिन्दू वह,न सिख,न ईसाई,
और न ही था वह मुसलमान.
न स्त्री,न पुरुष,वह था,
केवल और केवल एक इनसान.

ये सब देख समझ गया वह कि,
ये लिंग,जाति,धर्म तो है मात्र एक माया.
वास्तविकता जानकर जीवन की,
वह बहुत-बहुत पछताया.

सोचा काश मैं धरती पर रहते ही,
ये सब समझ पाता.
तो आज मैं शायद,
इस तरह न पछताता.

✍अशोक कुमार नेताम "बस्तरिया"
Email:-kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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