कल पायल का शब्द सुना मैंने,
शायद बहुत उछल रही हो.
मुझसे मिलने को
तुम इतना मचल रही हो.
पर तेरा अंदाज मुझे रास नहीं आया.
मुझे एकपक्षीय प्रेम तुम्हारा तनिक भी नहीं भाया.
हाँ मैं मिलूँगा तुमसे बिल्कुल उसी तरह,
जिस तरह हर जन्म में तुझसे मिला हूँ.
पर मेरी इच्छाओं का क्या
जो अब तक अपूर्ण हैं.
कल तक तो मैं था अव्यक्त.
अब तो होने दो कुछ व्यक्त.
प्रकट होने दो मेरे भीतर के सुप्त प्रेम को.
कहने दो मुझे किसी माँ-बहन की पीड़ा.
कहने दो इस दिशाहीन और खोखले समाज का यथार्थ.
कहने दो इस व्यसन पिशाच की विकरालता.
कहने दो असत्य के पट के पीछे छिपे सत्य को.
यदि हलचल हुई तो ठीक,
नहीं तो समझूँगा कि
मैंने पत्थरों को आवाज दी.
और तुमसे मिलने से पहले मुझे ''उनसे"मिलना ही है और ''उस से भी'' मिलना है.
तब उमड़ेगा मेरे भीतर तुम्हारे लिए
बेपनाह प्यार.
और फिर प्रसन्नता की शैया पर होगा
मृत्यु तुम्हारा और मेरा मधुर मिलन.
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
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